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Bhopal – दुनिया की कोई भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था हो या पूर्वोत्तर धार्मिक शासन व राजशाही उनके लिए सदैव प्रकृति ही मार्गदर्शक, संकेतक, गुरू शिक्षक, आचार्य रही हैं | प्रकृति जब बड़े भूकम्प लेकर आती हैं तो उससे पहले छोटी-छोटी तीव्रता के झटके देकर सचेत करती हैं व भूकम्प के बाद भी हल्के-हल्के झटके देकर समझाती हैं कि कौनसी व्यवस्था को बिगाड़ा गया इसलिए उसने ऐसा कदम उठाया | अब हम बात करते हैं दुनिया के सबसे बडे लोकतान्त्रिक व्यवस्था इंडिया यानि भारत की जो संविधान के अनुसार एक स्थाईत्व वाले ढांचे के रूप में अपने को मूर्तरूप में दर्शाकर हर रहवासी को विश्वास दिलाती हैं ।
हमने सर्वप्रथम 2011 में इस लोकतांत्रिक ढांचे का प्रारूप जो दुनिया का भी सबसे पहला था उसे राष्ट्रपति महोदय को भेजा व इस पर आधिकारिक साईन व मोहर वाला दस्तावेज आपको भी प्रस्तुत करा | इस प्रारूप को हमने विधिवत रूप से भारत के मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में भी ला दिया था | यह लोकतांत्रिक ढांचा 2024 के आते-आते किस तरह अव्यवस्थित व टूट,-फूट गया हैं वो हमने समय की चाल के अनुरूप घटी घटनाओं को रेखांकित करते हुए सार्वजनिक रूप से सभी के सामने रख दिया | यह ढांचा टूट-फूट व अव्यवस्था के कारण झरझर व डामाडोल होने लगा हैं और आने वाले समय में यह ढ़हने वाला हैं, इसका संकेत वो ड्राइवरों के आन्दोलन की तरह कई तरिके से बडी तीव्रता के साथ देने लगा हैं |
उच्चतम न्यायालय ने भी इसका सत्यापन इस टिप्पणी के साथ कर दिया की हम यदि संविधान के मार्ग से हटे तो देश में अराजकता व्याप्त हो जायेगी | संविधान के अनुसार नये कानून बनाने व पुराने कानून बदलने की एक पुरी व्यवस्था निर्धारित करी गई हैं | इसमें जनता की मांग, परेशानियों से मिले संकेत, लोगों के अज्ञानतावश व प्रक्रियाओं के अभाव एवं समय की चाल से पीछड़े व पुराने हो चुके कानूनों के कारण मजबूरन भूगतने पडे दुष्परिणामों को मीडीया के माध्यम से चयनित कर सामने लाया जाता है | मीडिया (प्रिंटिंग, इलेक्ट्रानिक, सोशियल इत्यादि) में लोगों द्वारा सुझाव, विशेषज्ञों की बहस से अगर-मगर वाले हर पहलू से परखने के बाद, वर्तमान में व्यवस्था चलाने वाले अधिकारियों के अनुभवों की कसौटी पर खरा उतरकर, कानूनी विशेषज्ञों के सहारे संविधान के तय करे दायरों के अन्तर्गत कागज पर लिखित रूप में उकेरा जाता हैं | इसके पश्चात् विधायिका यानि संसद के दोनों सदनों राज्यसभा व लोकसभा में अच्छे-बुरे, कानों के प्रिय व अप्रिय हर पहलू से गुजारा जाता हैं | इसमें संसदीय कमेटियों में भेजना व अन्य सभी प्रक्रियाएं इसके आन्तरिक पहलू हैं |
इसके बाद कानून को अन्तिम हस्ताक्षर व मोहर के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाता हैं । इसे राष्ट्रपति को अपने विवेक व अन्य स्वतंत्र रूप से उनके अन्तर्गत काम करने वाली संवैधानिक संस्थाओं के विशेषज्ञों के तत्वाधान में जांचना व परखना होता हैं | यदि कानून सीधा संवैधानिक, सामाजिक व धार्मिक ढांचे से जुडा हो तो संविधान ने उन्हें भारत के मुख्य न्यायाधीश से सलाह लेने का भी अधिकार भी दे रखा हैं । यदि उचित दिशा-निर्देशों के साथ कानून बनाने की बात न्यायपालिका से कार्यपालिका व विधायिका में जाता हैं त़ो ठीक हैं अन्यथा कानून को समय की मांग के अनुरूप पहले उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की विशेष कमेटी में भेजना चाहिए ताकि कानून बन जाने के बाद उसकी कमीयों को लेकर सुप्रीम कोर्ट को हर मामले में संवैधानिक पीठ बैठाकर सुनवाई न करनी पड़े |
किसान आंदोलन की इतनी सभी प्रक्रिया के बाद बने तीन कानूनों को लेकर जो हुआ उससे व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ उल्टा कानून बनाने की कई प्रक्रियाओं को साईड लाईन करना शुरु हो गया | इसमें संसद के दोनों सदनों के अध्यक्षों द्वारा कई सांसदों को सस्पेंड करने के बाद कानून पास करना भी प्रमुख हैं । अब हिट एंड रन मामले में भी यही हुआ जब कानून पास हो गया | अब कानून को लागू करने से रोक व लागू करने से पहले ट्रांसपोर्टरों से बात करने को निर्धारित करना पुरी संवैधानिक प्रक्रिया को उल्टी दिशा मे चलाने का निर्धारण करना हैं | आम नागरिकों के लिए भी यहां बड़ा संकेत निकला की चुप रहकर संविधान के विघटन व लोकतंत्र के ढांचे पर लग रही चोटो को देखते रहोंगे तो उसकी सजा भुगतनी पडेगी जैसे अभी पेट्रोल-डीजल उत्पादों की कमी के रूप में भुगता | समय रहते यह सम्भल गया अन्यथा कई लोगों को सजा के रूप में जान गवानी पड़ती | एक के बाद एक ऐसे ही कानून बनाने के मामले संविधान के उल्टे चलने लगे तो उसका न तो कोई अर्थ होगा और न ही परिणाम निकल सकता हैं बस लोकतान्त्रिक ढांचा उल्टा हो जायेगा या ढह जायेगा |
शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक