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जलते हुवे समशान मे….!

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रोज हम मर रहे है
खुद अपने आशियाने मे,
अब हो जाने दो एक सभा
जलते हुवे समशान मे ।।

कोई पुछेगा कहा थे तुम
जब हम बिमार थे,
नही थे हमारे साथमे
जब हम परेशान थे,
सियासत ही आपकी सास है
हमने पुकारा तो गुमनाम थे,
अब हो जाने दो एक सभा
जलते हुवे समशान मे ।।

क्या कसूर हमने किया?
जो साथ आपके हम खडे रहे,
लोग समझाते थे हमे
लेकीन साथ आपके अडे रहे,
कोसते है वे लोग हमे
लो हम अब बदनाम हुवे,
अब हो जाने दो एक सभा
जलते हुवे समशान मे ।।

सत्ता और सियासात तो
चलते रहेंगी ये तो आम है,
ढकेले खाईमे जो देशको
ये राज क्या फिर काम है?
कहो हमे तुम जोश मे की
हु मै आपके अहसान मे,
अब हो जाने दो एक सभा
जलते हुवे समशान मे ।।

पुछे जलते हुवी एक चिता
अब कौन संभाले हमारे अपनोंको?
न जाने आप फिर व्यस्त हो
पुरे करने अपने सपनोंको ,
एक बात तो सच कहो तुम
हम न थकेंगे आपके गुणगान मे,
अब हो जाने दो एक सभा
जलते हुवे समशान मे ।।

थोडा याद करो तुम
क्या वादे तुमने थे किये,
अच्छे दिन का सपना था
हमने भर भरके थे मत दिये,
तब कभी ना थकते थे हम
करते आपके गुणगान मे,
अब हो जाने दो एक सभा
जलते हुवे समशान मे ।।

अब हो जाने दो एक सभा
जलते हुवे समशान मे………….

शब्दरचना
पराग पिंगळे
यवतमाळ
9860134327