Home राष्ट्रीय विश्वगुरु भारत के रास्ते पर ….. खम्भा नौंचती दुनिया…!

विश्वगुरु भारत के रास्ते पर ….. खम्भा नौंचती दुनिया…!

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भोपाल – विश्वगुरु बनना और अन्य सभी के लिए नया मार्ग प्रशस्त करना बहुत ही गौरव के साथ बड़ी जिम्मेदारी का काम हैं। इससे आने वाली नई पीढ़ी आबाद भी हो सकती हैं और बर्बाद भी हो सकती हैं | यहां तक की कई नस्लें व प्रजातियां भी खत्म हो चुकी हैं | इसका सीधा अर्थ दैनिक जीवन में रहन-सहन, काम में आने वाले संसाधनों को बढावे व चलन से ही नहीं मानसिक सोच की दशा व दिशा भी तय करने से हैं।

वर्तमान में विश्वगुरु का ढ़का बजाने की हडबडाहट में एक संस्था के मन्दिर कार्यक्रम में इतना दमदार प्रदर्शन, प्रचार, प्रसार, राजनैतिक तमाशे किये गये की विज्ञान, तार्किक सोच, समझ व बौद्धिक क्षमता भी दुबक कर एक कोने में सिमट गई | यहां पहले कानूनन जीवित एक पत्थर की मूर्त से प्राण निकाले गये व फिर उसे दुसरे पत्थर की मूर्ति में स्थापित कर दिये गये | ऐसा अद्भूत, अविश्वसनीय, आलौकिक कार्य दुनिया का कोई भी देश आज तक नहीं कर पाया | विज्ञान की बात छोडों वो तो अंगुलियों पर गिनने जितना वर्षों पुराना हैं ।

नये भारत के इस कदम से दुनिया घबरा गई व सहम गई और अपने आप को पिछडता देख नये-नये छोटे-मोटे आविष्कार को सामने रख अपनी खुनस निकालती प्रकट हो रही हैं। इसमें सबसे नया इंसान के दिमाग या मस्तिष्क में सर्जरी के जरिए चिप इम्प्लांट करने का हैं। यह भी रोबोट के जरिए करने का हैं, जबकि महान भारत में तो बिना हाथ व किसी औजार को छूए बिना दुर खड़े रहकर मुंह से मंत्रों का उच्चारण करके प्राण इधर से उधर ट्रांसफर कर दिये | इसके बाद मीडिया के माध्यम से बिना पैसा खर्च करे प्रेस-वार्ता से शौर मचाने की कोशिश करी की पैरालिसिस का मरीज चल-फिर सकेगा और दृष्टिहीन देख पायेगा | बड़े-बड़े शब्दों से आपको डरने की कतई जरूरत नहीं हैं क्योंकि पैरालिसिस का मतलब लकवा और दृष्टिहीन का मतलब अन्धा होता हैं |

पश्चिमी देशों की यह राजनैतिक चाल लगती हैं जो भारत की सदियों पुरानी सभ्यता व संस्कृति को खत्म करना चाहते हैं | जब अन्धें व लकवे के कारण अपंग लोग ईलाज से ठीक कर दिये जायेंगे तो मन्दिर, धार्मिक व दर्शनीय स्थलों के बाहर दयनीय, लाचार, विवश, पेट भरने के लिए दुसरे के सामने गिडगिडानें वाले विलुप्त हो जायेंगे | इससे आप और हमारे जैसे सभी बड़े महान व धार्मिक लोग किसे दान, भीक्षा देकर धार्मिक रूप से पुण्य प्राप्त करेंगे और मोक्ष प्राप्ति के सारे द्वार बन्द हो जायेंगे | पहले ही हालात इतने विकट चल रहें हैं कि कभी-कभी 7 -8 लोगों को मिलकर एक केला या कुछ फल एक असहाय को देकर पुण्य प्राप्त करना पड जाता हैं। इसके लिए फोटो खिंचवाने, वायरल करने व उसकी फ्रेम बनवाने में केले व फलों से दस गुणा खर्चा हो जाता हैं ।

आर्टिफिशयल इंटेलिजेन्स के नाम से कृत्रिम रोबोट पर हुबरू चेहरा लगाकर उसे बुला चला कर पहले ही दुनिया के देश अपने आप का विकसित होने का ढोल पीट रहे थे | भारत के ज्ञानी व पढ़े-लिखे लोगों ने पत्थर की मूर्त के चेहरे पर कम्प्यूटर से बोलता विडियो फिट कर सोशियल मीडिया पर वायरल करा देशवासीयों के दिल दिमाग पर जो विज्ञान और तकनीक का भूत चढा था उसे पानी-पानी कर उतार दिया | आर्थिक आधार पर देखे तो 11 दिन में करिबन 10 करोड का दान प्राप्त करके दुनिया के लोगों को आईना दिखा दिया कि दुनिया में दस-बीस वर्ष ज्यादा और आराम से जीकर क्या करना हैं आगे तो मोक्ष ही प्राप्त करना हैं | मां गंगा ने अपने पुत्र देवव्रत यानी भीष्म पितामह से पहले सात बच्चों को जन्म के साथ गंगा में बहाकर धरती पर जीवन जीने की वैल्यू को पहले ही स्पष्ट कर दिया था |

लकवे से ग्रसित लोगों को ठीक करना, अन्धों को रोशनी देना यह सब पैसा कम्पनीयों, बीमा कम्पनीयों, हॉस्पीटल व चिकित्सकों के चोचले हैं | इन्हें तो हमारे कुर्सीधारी राजनेता पैसा भेंककर किसी भी देश से भारत में ला देंगे | आविष्कार करना बच्चों का खेल हैं और करोडों-अरबों रूपये लाइसेंस फीस देकर देश में लाने के लिए असली दम व छप्पन ईंच का सीना चाहिए होता हैं | भारत के लोगों व अपने केडरों को ट्रेनों व बसों से मन्दिर ले जाकर मोक्ष प्राप्त कराना जरूरी होता हैं न कि इन पैसों से विकलांग, अन्धें, शारीरिक व मानसिक रूप से ग्रसित लोगों को ऐसे ईलाज कराके इस धरती पर और अधिक वर्षों तक कष्ट भोगने के लिए मजबूर करके मोक्ष से दूर करने का अधर्म करने से | यह भगवान की आस्था व निष्ठा के भी खिलाफ है क्योंकि उसने लोगो को गलत कर्मों के खिलाफ जो सजा दी उसे ये लोग खत्म करके उसके विधान में रूकावट पैदा कर अपराधी बन जाते हैं |

धर्मानुसार यहां तो लोग मृत्युलोक में अपनी सजा भोगने आते हैं | यदि कोई व्यक्ति एक बम फोड़ के सैकडों लोगों को इस जीवन-मरण के कष्टों से मुक्त कर सीधा मोक्ष दिला दे तो यह कितना बडा धर्म या अधर्म होगा हमें नहीं पता परन्तु मरने वालों को तो फायदा हो गया |

शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक